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Sunday, March 18, 2012

मनुष्य खगोल

तारे जो नज़र आते हैं नभ में,
वैसी ही कहानी बनी सब में,
ऐसा लगता है मानो दुनिया कि छत पे एक विशाल आइना जड़ा हो,
बिलकुल मुझ जैसा एक मनुष्य सुदूर मेरे ऊपर खड़ा हो |
वो मनुष्य रुपी तारा है,
मेरे जीवन का सारांश सारा है |
धरा पे जितना अँधेरा नभ में उतने तारे नज़र आते हैं,
इससे पता चलता है कि एक स्थान के अंधकार से दूसरे के उजाले नज़र आते हैं|
जैसे ही सुबह हो जाती है,
तारो कि दुनिया नज़र नहीं आती है,
सिर्फ एक प्रमुख तारा सूर्य छा जाता है,
भूमंडल कि चकाचौंध को स्वयं खा जाता है |
चंद्रमा या आफताब,
एक प्राकृतिक उपग्रह या किसी पतिव्रता का ख्वाब,
यह चाँद आकाश का ध्वज है,
किसी गरीब मुसलमान कि इकलौती हज है |
आज नभ में एक टूटा तारा था,
जिसको वायुमंडल का सहारा था,
मतलब कम से कम यह तारे औंधे मुँह तो नहीं गिरते धरा पर,
नष्ट हो जाते हैं नभ और ज़मीन के बीच न जाने कहाँ पर|
वैसे ही शायद मनुष्य है,
उसकी मृत्यु एक सरल रहस्य है,
हम भी ज़मीन से सीधा ऊपर नहीं जाते हैं,
कहीं बीच में ही अटक जाते हैं,
अधिकाँश लोग मरणोपरांत भटक जाते हैं,
और चंद खुशनसीब खुद से और खुदा से लिपट जाते हैं|